बीच में हमारा 'फर्स्ट ब्वॉय' संजय बैठा है. आज वह भिलाई (सेल) में असिस्टेंट जेनेरल मैनेजर है. उसकी बायीं ओर शशीकान्त है- बैंक ऑव इण्डिया में सीनियर मैनेजर- अभी-अभी हाँगकाँग पोस्टिंग गया. दाहिनी ओर है सतनाम- दिल्ली में अपना व्यवसाय है. एकदम मस्त.
संजय के पीछे रंजीत है.
ऐसा ही एक वनभोज मनाते हमलोग.
बिन्दुवासिनी पहाड़ के पीछे की वादी में लोग पहली जनवरी को वनभोज मनाने जुटते हैं.
अधूरी नहर.
बिन्दुवासिनी पहाड़ के पीछे रेलवे लाईन, जो राजमहल की पहाड़ियों तक जाती हैं. अंग्रेजों ने यह लाईन बिछायी थी बोल्डर और चिप्स लाने के लिये. वर्षों तक यह परित्यक्त रही, इधर कुछ वर्षों से फिर इस्तेमाल में है.
बिन्दुवासिनी पहाड़ के पीछे की वादियों में टहलने जाना भी हमलोगों का शौक था. हालाँकि अब यह वादी खुबसूरत नहीं रही.
स्टूडियो रूपश्री में.
पेट्रोल टंकी वाले रास्ते (राजमहल रोड) पर अक्सर हमलोग टहलने जाया करते थे.
फिर रंजीत ने मेरा यह फोटो खींचा.
राजमहल की पहाड़ियों पर रंजीत का यह फोटो मैने खींचा था. (शायद नवम्बर' 86)
तीनों (ईडियट्स) साथ-साथ.
दूसरा लंगोटिया दोस्त- उत्तम.
मेरा लंगोटिया दोस्त- रंजीत.
विन्दुधाम पथ. (किसी होली के मौके का यह चित्र है.)
बरहरवा का रेलवे स्टेशन- ओवरब्रिज.
यह है, बरहरवा का एक सूर्यास्त- राजमहल की नीली पहाड़ियों की शृँखला के पीछे छुपते सूर्यदेव.
मेरे गाँव में एक छोटी-सी पहाड़ी पर माँ विन्दुवासिनी का मन्दिर है। सूर्य की पहली किरणें माँ की पिण्डियों पर पड़ रही हैं.
धन्यवाद मित्र
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